Israel Palestine war: 7 अक्टूबर की रात जब दुनिया सो रही थी, हमास ने अचानक इजरायल के अनगिनत ठिकानों पर रॉकेट दागे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमास ने इस हमले में 5,000 से 7,000 रॉकेट दागे. इस हमले में नौ सौ से ज्यादा इसराइली मारे गए. जवाब में इजराइल ने भी हमला कर दिया. जिसमें तीन सौ से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हो गई. आइए आपको बताते हैं कि 35 एकड़ जमीन के टुकड़े को लेकर इजरायल और फिलीस्तीन के बीच सालों से लड़ाई क्यों चल रही है.
35 एकड़ जमीन की लड़ाई
यह पूरी दुनिया कुल 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ भूमि पर बसी है. दुनिया भर में लगभग 8 अरब लोग इस पर रहते हैं। इस 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ जमीन में से सिर्फ 35 एकड़ जमीन ऐसी है जिसके लिए सालों से लड़ाई लड़ी जा रही है. एक ऐसा युद्ध जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई. लेकिन आज भी दुनिया की कुल 95 अरब 29 करोड़ 60 लाख एकड़ जमीन में से इस 35 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है. हमास का हमला और जवाब में इजराइल की भारी बमबारी. जी हां, आप मानें या न मानें, महज 35 एकड़ जमीन के टुकड़े को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन के बीच ये जंग सालों से चली आ रही है.
पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के नियंत्रण में है. इस युद्ध को समझने के लिए सबसे पहले इस 35 एकड़ जमीन का पूरा सच समझना जरूरी है. जेरूसलम में 35 एकड़ जमीन पर एक जगह है, जो तीन धर्मों से संबंधित है. यहूदी इस स्थान को हर-हवाईयत या टेम्पल माउंट कहते हैं। जबकि मुस्लिम इसे हरम-अल-शरीफ कहते हैं. इस जगह पर कभी फिलिस्तीन का कब्ज़ा था. बाद में इस पर इजराइल ने कब्जा कर लिया। लेकिन इसके बावजूद आज का सच ये है कि 35 एकड़ ज़मीन पर स्थित टेंपल माउंट या हरम अल शरीफ़ न तो इसराइल के नियंत्रण में है और न ही फ़िलिस्तीन के. बल्कि ये पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के अधीन है.
मुसलमानों का दावा
इस 35 एकड़ ज़मीन के टुकड़े पर 761 साल तक मुसलमानों का कब्ज़ा था, जिस पर सैकड़ों साल पहले ईसाइयों का कब्ज़ा था. लेकिन इस जगह पर 1187 में मुसलमानों ने कब्ज़ा कर लिया और तब से लेकर 1948 तक इस पर मुसलमानों का ही कब्ज़ा रहा। लेकिन फिर 1948 में इजराइल का जन्म हुआ और तब से जमीन के इस टुकड़े पर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं. आइए जानें कि इस 35 एकड़ ज़मीन के टुकड़े पर क्या है, जिसके लिए यहूदी, ईसाई और मुसलमान सदियों से लड़ते आ रहे हैं.
यहूदियों का दावा
यहूदियों का मानना है कि उनका टेंपल माउंट येरुशलम की उसी 35 एकड़ ज़मीन पर है. अर्थात वह स्थान जहां उनके भगवान ने मिट्टी रखी थी.जिससे आदम का जन्म हुआ. यहूदियों का मानना है कि यही वह स्थान है जहां भगवान ने इब्राहीम को बलि देने के लिए कहा था.इब्राहीम के दो बेटे थे. एक इश्माएल है और दूसरा इसहाक है. इब्राहीम ने इसहाक को परमेश्वर को बलि चढ़ाने का निर्णय लिया. लेकिन यहूदी मान्यताओं के अनुसार, स्वर्गदूत ने इसहाक की जगह एक भेड़ ले ली. जिस स्थान पर यह घटना घटी उसे टेम्पल माउंट कहा जाता है.इसका उल्लेख यहूदियों की धार्मिक पुस्तक हिब्रू बाइबिल में मिलता है. बाद में इसहाक को एक पुत्र हुआ। जिसका नाम जैकब था. जैकब का दूसरा नाम इज़राइल था. इसहाक के पुत्र इस्राएल के बाद में 12 पुत्र हुए. उनके नाम इस्राएल के बारह गोत्र थे.यहूदी मान्यता के अनुसार, इन जनजातियों की पीढ़ियों ने बाद में यहूदी राष्ट्र का निर्माण किया. शुरुआत में इसे इज़राइल की भूमि कहा जाता था। इजराइल की यही जमीन 1948 में इजराइल के दावे का आधार बनी.
पश्चिमी दीवार होली ऑफ होलीज़ का हिस्सा है, जो इज़राइल की भूमि में यहूदियों द्वारा बनाया गया एक मंदिर है. जिसका नाम पहले मंदिर था. इसे इजराइल के राजा सोलोमन ने बनवाया था. बाद में इस मंदिर को दुश्मन देशों ने नष्ट कर दिया. कुछ सौ साल बाद, यहूदियों ने उसी स्थान पर एक मंदिर का पुनर्निर्माण किया. इसे दूसरा मंदिर कहा जाता था। इस दूसरे मंदिर के आंतरिक भाग को परमपवित्र स्थान कहा जाता था. यहूदियों के अनुसार यह वह पवित्र स्थान था जहाँ विशेष पुजारियों को छोड़कर स्वयं यहूदियों को भी जाने की अनुमति नहीं थी. यही कारण है कि स्वयं यहूदियों ने भी दूसरे मंदिर के परमपवित्र स्थान को नहीं देखा। लेकिन 1970 में रोमन ने उसे भी तोड़ दिया. लेकिन इस मंदिर की एक दीवार बरकरार रही। यह दीवार आज भी बरकरार है. इस दीवार को यहूदी पश्चिमी दीवार कहा जाता है. यहूदी इस पश्चिमी दीवार को पवित्र क्षेत्र का हिस्सा मानते हैं. लेकिन चूँकि स्वयं यहूदियों को भी पवित्र स्थान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उन्हें निश्चित रूप से नहीं पता था कि वह आंतरिक स्थान वास्तव में कहाँ था. लेकिन इसके बावजूद, पश्चिमी दीवार के कारण यह स्थान यहूदियों के लिए बहुत पवित्र है.
ईसाई का दावा
ईसाइयों का मानना है कि ईसा मसीह ने इसी 35 एकड़ भूमि से उपदेश दिया था। इसी भूमि पर उन्हें सूली पर चढ़ाया गया था. फिर वह फिर उठ खड़ा हुआ. और अब जब वह एक बार फिर जीवित लौटेंगे तो यह जगह अहम भूमिका निभाएगी. जाहिर है, यह स्थान ईसाइयों के लिए उतना ही पवित्र है जितना मुसलमानों या यहूदियों के लिए.
अब इसका मालिक कौन है?
अब सवाल यह है कि जब यह 35 एकड़ जमीन का टुकड़ा तीन धर्मों के लिए इतना महत्वपूर्ण है तो अब इस पर कब्जा किसका है? इन धार्मिक स्थलों के रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है? और यहूदी और मुसलमान इस पर क्यों लड़ते रहते हैं?
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