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Shaheed Kartar Singh Sarabha Martyrdom Day: कम उम्र में दी गई शहादत को दुनिया याद रखेगी, करतार सिंह सराभा का शहीदी दिवस आज

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Shaheed Kartar Singh Sarabha Martyrdom Day:देशभर में शहीद करतार सिंह सराभा का शहीदी दिवस मनाया जा रहा है. उनकी शहादत को आज हर कोई नमन कर रहा है. इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी शहीदी दिवस पर शहीद करतार सिंह सराभा को श्रद्धांजलि दी है.

बंगाल के खुदीराम बोस के बाद 18 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए शहीद करतार सिंह सराभा का नाम आता है, जिन्होंने दया अपील ठुकराकर 19 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया था. उन्होंने कहा कि भले ही हजारों लोगों की जान चली जाए, मैं देश के लिए बलिदान दे दूंगा.

शहीद करतार सिंह सराभा के जीवन के बारे में
24 मई 1896 को लुधियाना के सराभा गांव के एक अमीर किसान मंगल सिंह और माता साहिब कौर के घर जन्मे करतार सिंह सराभा को 16 नवंबर 1915 को लाहौर की सेंट्रल जेल में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी. करतार सिंह सराभा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गदर आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे. 1912 में वे अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अध्ययन करने गए, जहां वे गदर पार्टी में सक्रिय हो गए. गदर पार्टी भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रही थी.

- 1915 में करतार सिंह सराभा भारत लौट आए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की तैयारी करने लगे लेकिन सरकार को उनकी गतिविधियों के बारे में पता चल गया और 16 नवंबर 1915 को उन्हें फांसी दे दी गई.

- करतार सिंह में बहुत साहस था और उन्होंने कई जगहों की यात्रा की. वह लोगों को इकट्ठा करते थे और उन्हें योजनाओं की जानकारी देते थे. करतार सिंह पूरी तरह से सक्रिय व्यक्ति थे और उनके साथी उनका बहुत सम्मान करते थे और कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार थे. करतार सिंह सराभा बचपन में बहुत फुर्तीले और चतुर थे जिसके कारण उनके सभी दोस्त उन्हें उड़ने वाला साँप कहते थे.

- सराभा गांव के स्कूल और आठवीं व नौवीं मालवा खालसा हाई स्कूल लुधियाना से प्राथमिक शिक्षा पास करने के बाद करतार सिंह अपने चाचा के पास उड़ीसा चले गए. वहां उन्होंने दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की. करतार सिंह सराभा 1912 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए.  अमेरिका पहुंचकर उन्होंने सैन फ्रांसिस्को की बर्कले यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और रसायन शास्त्र की पढ़ाई शुरू कर दी.

- बंगाल के खुदीराम बोस के बाद 18 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए शहीद करतार सिंह सराभा का नाम आता है, जिन्होंने दया की अपील ठुकराकर 19 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया था। उन्होंने कहा कि भले ही मुझे हजारों जानें मिलें लेकिन मैं देश के लिए बलिदान दे दूंगा.

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