Sheetla Ashtami 2024: शीतला अष्टमी या शीतलाष्ठमी का त्योहार शीतला माता को समर्पित है. इस बार शीतला अष्टमी का त्योहार 2 अप्रैल यानी आज मनाया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार, शीतला माता को मां दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है. शीतला अष्टमी को बासोरा पूजा या बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. यह त्योहार होली के आठ दिन बाद मनाया जाता है. इस दिन सभी लोग बासी खाना खाते हैं. मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता. शीतला अष्टमी को उत्तर भारत के राज्यों राजस्थान, यूपी और गुजरात में प्रमुखता से मनाया जाता है.
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त (Sheetala Ashtami 2024 Shubh Muhurat)
शीतला अष्टमी मंगलवार, 2 अप्रैल शीतला अष्टमी पूजन मुहूर्त- आज सुबह 6 बजकर 10 मिनट से शाम 6 बजकर 40 मिनट तक
अष्टमी तिथि की शुरुआत- 1 अप्रैल कल रात 9 बजकर 09 मिनट से शुरू हो चुकी है
अष्टमी तिथि का समापन- 2 अप्रैल आज रात 8 बजकर 08 मिनट पर होगा शीतला
पूजन विधि (Sheetala Ashtami Pujan Vidhi)
- शीतला अष्टमी की पूजा के दौरान एक दिन पहले ही पानी में भिगोई हुई चने की दाल माता रानी को अर्पित की जाती है. एक दिन पहले ही हलवा, पूरी, दही - वड़े, पकौड़ी, पूएं, रबड़ी जैसे भोग बनाकर रख लिए जाते हैं और अगले दिन सुबह महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर ठंडे पानी से स्नान करती हैं.
- इसके बाद शीतला माता को इन सभी चीजों का भोग लगाकर परिवार की सुख शांति और समृद्धि की कामना करती हैं.
- इस दिन शीतला माता को बासी भोग लगाने के साथ ही घर के सभी लोग भी बासी भोजन ही करते हैं.
- शीतला माता की कथा सुनने के बाद घर के मेन गेट पर हल्दी के हाथ के 5-5 छापे लगाते हैं.
- इसके बाद शीतला माता को अर्पित किए हुए जल को पूरे घर में छिड़का जाता है, ऐसा करने से शीतला माता की कृपा हमेशा बनी रहती है.
शीतला माता को क्यों लगाया जाता है बासी खाने का भोग?
शीतला अष्टमी के दिन बासी प्रसाद का भोग लगाने के पीछे कहा जाता है कि माता शीतला को ठंड़ा भोजन अति प्रिय है. धार्मिक मान्यता के अनुसार माता शीतला के नाम का मतलब है ठंडा. यही वजह है कि लोग शीतला देवी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ठंडी चीजों का भोग लगाते हैं.
शीतला अष्टमी कथा (Sheetala Ashtami Katha)
एक गावं में बूढ़ी माता रहती थी. एक दिन पूरे गांव में आग लग गई. इस आग में पूरा गांव जलकर खाक हो गया लेकिन बूढ़ी माता का घर बच गया. यह देखकर सभी दंग रह गए कि पूरे गांव में केवल एक बूढ़ी माता का घर कैसे बच गया. सभी बूढ़ी माता के पास आकर पूछने लगे तो उन्होंने बताया कि वह चैत्र कृष्ण अष्टमी को व्रत रखती थीं. शीतला माता की पूजा करती थीं. बासी ठंडी रोटी खाती थीं. इस दिन चूल्हा भी नहीं जलाती थी. यही वजह है कि शीतला माता की कृपा से उनका घर बच गया और बाकी गांव के सभी घर जलकर खाक हो गए. माता के इस चमत्कार को देख पूरा गांव माता शीतला की पूजा करने लगा और तब से शीतला अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई.
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