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Garuda Purana: मृत्यु के समय किस अंग से निकलती है आत्मा? कौन सा द्वार है शुभ-अशुभ

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Garuda Purana: हिंदू धर्म में महापुराण माने गए गरुड़ पुराण में जीवन-मृत्‍यु के साथ-साथ आत्‍मा के सफर के बारे में बताया गया है. इस पुराण में भगवान विष्‍णु और उनके वाहर पक्षीराज गरुड़ के बीच हुई वार्ता का उल्‍लेख किया गया है. जिसमें भगवान जन्‍म-मृत्‍यु, पाप-पुण्‍य, स्‍वर्ग-नर्क आदि के रहस्‍यों को उजागर करते हैं. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि व्‍यक्ति के शरीर से प्राण कैसे निकलते हैं. इसके अलावा मरने के बाद आत्‍मा का सफर कैसा होता है. उसे स्‍वर्ग-नर्क या कहां पर जगह मिलती है. 
मृत्यु के समय आत्मा शरीर से बाहर निकल जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो आत्मा शरीर के किस अंग से बाहर निकलती है. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि, कर्मों के अनुसार व्यक्ति के प्राण भी अलग-अलग अंगों से निकलते हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

शरीर के होते हैं नौ द्वार
गरुड़ पुराण के अनुसार, शरीर के नौ द्वार होते हैं और मृत्यु के समय आत्मा शरीर के इन्हीं नौ द्वारों में से किसी एक से बाहर निकलती है. ये नौ द्वार होते हैं- दो आखें, दो कान, दो नासिका, मुंह और उत्सर्जन अंग.

कौन सा अंग होता है शुभ-अशुभ

- माना जाता है कि मृत्यु के समय कुछ लोगों की आत्मा नाक से बाहर निकलती है. इसे बहुत शुभ माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, ये लोग जीवन में अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाते हैं.

- मुख से भी प्राण निकलने को भी गरुड़ पुराण में शुभ बताया गया है. जो लोग जीवन में धर्म के मार्ग पर चलते हैं, उनके प्राण मुख से निकलते हैं.

- माना जाता है कि मृत्यु के समय जिन व्यक्ति की आत्मा आंखों से बाहर निकलती है, वो लोग जीने की अधिक इच्छा रखते और इन्हें जिसे अपने परिवार से बहुत अधिक लगाव होता है.

- जो लोग अपना पूरा जीवन सिर्फ धन-दौलत कमाने में लगा देते हैं उनकी आत्मा मृत्यु के समय उत्सर्जन अंग यानी मल और मूत्र के द्वार से निकलती है. इसे शुभ नहीं माना जाता.


इतने दिन अपने घर रहती है आत्‍मा 
यमलोक में आत्‍मा यमराज के सामने अपने घर जाने की अनुमति पाने के लिए गिड़गिड़ाती है और फिर से अपने घर आती है. यहां वह फिर से अपने शरीर में प्रवेश करना चाहती है लेकिन यमदूत उसे मुक्‍त नहीं करते. वह अपने परिवार के मोह के कारण उनसे दूर नहीं जाना चाहती है. इसलिए पिंडदान किया जाता है ताकि आत्‍मा परिवार के मोह से मुक्‍त हो जाए. वरना वह प्रेत बनकर सालों तक मृत्‍युलोक में भटकती रहती है. गरुड़ पुराण के अनुसार व्‍यक्ति की मृत्यु के बाद 10 दिन के अंदर उसका  पिंडदान अवश्य कर देना चाहिए. 

 

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